साधो, सुप्रीम कोर्ट में नारी शक्ति की बिजली चमकी । हमारी आंखें डर के मारे बन्द हो गयीं । गनीमत हुयी कि हम अंधे नहीं हुये । आंखों की रोशनी चली जाती तो हम बुढ़ापे में ठोकर खाते । हमें कौन सहारा देता । हमारी नारी बेचारी तो हमारा साथ छोड़कर अल्ला मियां को प्यारी हो गयी । वह सचमुच बेचारी थी । उसने हमारे जैसे बेपरवाह, गरीब, कलमकार के साथ लड़ते झगड़ते, रूठते मनाते जिन्दगी के पचास बरस गुजार दिये । पता नहीं किस पोंगा पण्डित ने उसके जेहन में यह जहर भर दिया था कि पति को फैशन के मुताबिक हर रोज बदला नहीं जा सकता है । पति का चीर एक बार पहना तो उसे मरने तक उतारने की मनाही है ।
साधो, हमारे मुल्क में करोड़ों ऐसी अन्धविश्वासी, गयी गुजरी, गलीज दिमाग औरतें हैं जो एक ही मर्द के साथ सारी जिंदगी गुजार देती हैं । लगता है इस मुल्क का यह प्रदूषण कभी दूर नहीं होगा ।
ये अनपढ़ नारियां कुछ नहीं जानतीं । इन्हें इक्कीसवीं सदी की बयार छू कर भी नहीं निकली, ये लिव इन रिलेशन से महरूम हैं । इन्होंने वह क्लब कभी नहीं ज्वाइन किया जिसमें वाइफ, हस्बेण्ड की अदला बदली होती है । नया मर्द, नयी औरत का जायका काबिले बयान नहीं । इस जायके को वही जानता है जिसने कभी इसका सुख उठाया हो ।
इक्कीसवीं सदी के माहौल में हजारों बरस पुरानी लीक पर चलना कौन सी समझदारी है । इस तरह मुल्क तरक्की की सीढ़ियों पर चढ़ कर विकास के शिखर पर कैसे पहुंचेगा ।
मामला काबिले फिक्र है इसीलिये एक सम्मानित महिला वकील ने यह सवाल सुप्रीमकोर्ट में उठाया है । मामला एक फैसले से जुड़ा है जिसमें न्यायमूर्ति ने एक रखैल के लिये ‘कीप’ शब्द का इस्तेमाल किया । महिला वकील ने पूछा है कि क्या कोई औरत किसी मर्द को रखैल रख सकती है ।
सवाल मौजूं, पेचीदा और दिलचस्प है । महिला वकील के सवाल में नाराजगी भरी आधुनिकता है लेकिन उन्होंने खुद को अतिआधुनिक होने से बचा लिया । वकील की दलील बेहद शातिर होती हैं । हम तो पुरातनपंथी, खण्डहरों में विचरने वाले जिंदा प्रेत माने जाते हैं लेकिन हमें भी मालूम है कि बहुत सी अतिआधुनिक महिलाएं मर्दों को रखैल रखती हैं । उन्हें अंग्रेजी में ‘जिगालो’ कहा जाता है । मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में जिगालो पैसे पर अपनी सेवाएं देते हैं । थोड़ा कहा बहुत समझना, चिट्ठी को तार समझना । बात को अफसाना और घास को दाना बनाना वाजिब नहीं है । इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो ।
साधो, वकील साहिबा को ‘कीप’ शब्द पर एतराज है । ‘कन्कोबाइन’ पर उन्हें नाराजगी है । रखैल लफ्ज पर उनका भड़कना लाजिमी है । जजों की लाचारी है कि उन्हें जजमेंट लिखने के लिये डिक्शनरी में दर्ज शब्द ही इस्तेमाल करने पड़ते हैं । इस मर्ज का क्या इलाज है । संसद में कानून पास कर डिक्शनरियों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये । कानून पास करने में देर हो तो आरडिनेन्स लागू कर देना चाहिये । सुप्रीम कोर्ट ये दोनो काम नहीं कर सकती । शिकायत संसद पर है तो गुस्सा सुप्रीम कोर्ट पर कैसे उतारा जा सकता है ।
सम्मानित वकीलसाहिबा को लिव इन रिलेशन पर कोई एतराज नहीं है । इस रिलेशन पर तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही मोहर लगा चुकी है । इस रिलेशन का दायरा बताने का काम बाकी था । कोर्ट ने अपनी समझ से यह जिम्मेदारी निभा दी ।
मामला दक्षिण भारत की एक फिल्म अभिनेत्री खुश्बू से जुड़ा था । इस मामले पर फैसला देते हुये कोर्ट ने कहा था कि बालिग मर्द और औरत अपनी सहमति से साथ रह सकते हैं । फैसला लिखते वक्त एक माननीय न्यायधीश ने अपनी सारी हदें तोड़ दीं । उन्होंने लिखा कि भगवान श्री कृष्ण और भगवती राधा के बीच लिव इन रिलेशन था । यह मिसाल देने की कोर्ट को कोयी जरूरत नहीं थी । इस मिसाल के बिना भी कोर्ट का फैसला अधूरा न रहता लेकिन माननीय न्यायधीश को करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर चोट करनी थी । वे अपना काम कर गये । उन्हें माननीया वकील साहिबा बेहिचक अति आधुनिकों की जमात में शामिल करेंगी । उन्होंने यह जजमेंट जरूर पढ़ा होगा, पढ़ा नहीं होगा तो सुना जरूर होगा । करोड़ों हिंदुओं के कलेजे पर घाव करने वाला यह जजमेंट आज भी जस का तस है । इसकी भाषा में सुधार करने पर किसी ने नहीं सोचा । इस मिसाल से बेजबान हिंदुओं के दिल पर क्या गुजरी होगी जिनका सवेरा श्री राधा के नामजप से होता है, जो जय श्रीराधे कह कर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं ।
गरज ये कि हिंदू तो जन्म से ही साम्प्रदायिक होता है । सेकुलर होने के लिये उसे बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है । जो जितना पढ़ा लिखा है उतना अधिक सेकुलर है । ऐसे ही पढ़े लिखों के बारे में जनाब अकबर इलाहाबादी ने फरमाया था –
हम ऐसी कुल किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं ।
जिनको पढ़ कर लड़के बाप को खब्ती समझते हैं ।
बात निकलेगी तो बहुत दूर तक जायेगी । रखैल, कीप या कन्कूबाईन शब्द बदबूदार हैं लेकिन रखैल या कीप होना उससे ज्यादा अफसोसजनक है । यह समाज पुरूष प्रधान रहा था, रहा है, आगे क्या होगा राम जी जाने । चंद महिलाओं के अतिआधुनिक हो जाने से समाज की स्त्रियों में रातों रात कोई बदलाव नहीं आ सकता । मजबूरी में पैसे के बदले जिस्म बेचने वाली बेबस औरतों को सेक्सवर्कर का नाम देने से समाज की कालिख नहीं धुल सकती । कोई महिला अपनी इच्छा से जिस्म बेचने का धंधा नहीं करती, रखैल, कीप नहीं बनती । वकील साहिबा पेड़ की पत्तियां तोड़ना चाहतीं हैं, जहरीले पेड़ को जड़ से उखाड़ना नहीं चाहतीं । यह जड़बुद्धि कलमकार उनसे क्या गुजारिश करे । जजों पर खीज उतारने के बजाये उन्हें सजामसुधार पर अपना कीमती वक्त खर्च करना चाहिये ।
=>जज साहेब ये बेचारी रखैल नहीं है ये तो बस एक शादीशुदा मर्द के साथ लिवइन रिलेशन में है । इस बेचारी का क्या पता कि ये किसी दूसरी औरत का घर/मर्द तोड़ रही है ।
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